वर्तमान अध्यक्ष

डा. प्रणव पण्ड्या

प्रमुख: अखिल विश्व गायत्री परिवार
कुलाधिपति: देव संस्कृति विश्वविद्यालय
निदेशकः ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान
सम्पादक: अखण्ड ज्योति पत्रिका
राष्ट्रपति: स्वामी विवेकानंद योगविद्या महापीठम

 

व्यक्तिगत विवरण :-
जन्म- 8 नवम्बर 1950 (रूप चतुर्दशी)
धर्मपत्नी- श्रीमती शैलबाला पण्ड्या (सुपुत्री वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं.श्रीराम शर्मा आचार्य)

शैक्षणिक योग्यता एवं उपलब्धियाँ :-
एम.जी.एम.मेडिकल कॉलेज इन्दौर से जनवरी 1972 में एम.बी.बी.एस. उत्तीर्ण किया । इसी संस्था से दिसम्बर 1975 में मेडीसिन में एम.डी.की उपाधि तथा स्वर्ण प्रदक प्राप्त किया । अमेरिका से आकर्षक पद का प्रस्ताव आया, किन्तु भारत में ही रहकर सेवा करना उचित समझा ।
विद्यार्थी जीवन में न्यूरोलॉजी तथा कार्डियोलॉजी के प्रख्यात विशेषज्ञों से जुड़कर मार्गदर्शन प्राप्त किया । अनुसंधान-पत्र प्रकाशित हुए तथा सायकोसोमेटिक व्याधियों के उपचार में विशेष रुचि ली ।
जनू 1976 से सितम्बर 1978 तक भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स हरिद्वार तथा भोपाल के अस्पतालों में इन्टेंसिव केयर यूनिट के प्रभारी रहे । भारतीय चिकित्सक संघ (ए.पी.आय.) के सदस्य बने । 
 समय-समय पर रिसर्च पेपर्स पढ़े व कई वर्कशॉप सेमीनार्स का संचालन किया ।

युग निर्माण योजना मिशन से 1963 में सम्पर्क में आये । सन् 1969 से 1977 के बीच गायत्री तपोभूमि मथुरा तथा शंतिकुंज हरिद्वार में लगे कई शिविरों में भाग लिया । सितम्बर 1978 में नौकरी त्याग पत्र देकर स्थायी रूप से हरिद्वार आ गये ।
परम पूज्य गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी के मार्गदर्शन एवं संरक्षण में अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय हेतु ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान हरिद्वार की स्थापना जून 1978 में की । तब से इस संस्थान के निदेशक हैं । इस संस्था की आधुनिक प्रयोगशाला में पूज्य गरुदेव के मार्गदर्शन में साधना के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रयोग किये जा रहे हैं । अभी तक शांतिकुंज आए हुए अस्सी हजार से अधिक साधकों पर यह प्रयोग-परीक्षण किये जा चुके हैं । संस्थान सभी आवश्यक विषयों पर पचास हजार से अधिक पुस्तकों के पुस्तकालय से सुसज्जित है ।
अखण्ड-ज्योति हिन्दी तथा अन्य 8 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित उसकी सहयोगी पत्रिकाओं, जिनकी सदस्यता लगभग पच्चीस लाख है, के सम्पादक।

अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रतिपादन हेतु सन् 1990 से पूरे देश का व्यापक भ्रमण, वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा के दिशा-र्निदेशन में उनकी प्रेरणा से सन् 1991 से सारे विश्व में रहने वाले प्रवासी भारतीयों में प्रचार हेतु देव-संस्कृति दिग्विजय अभियान अभियान का सूत्रपात । 74 देशों में गायत्री परिवार की शाखाओं की स्थापना । कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, यू.सी.एल.ए. तथा अनेक विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक पहलू प्रस्तुत करने के लिए सम्मेलनों, सेमिनार्स का आयोजन । अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, डेनमार्क, नर्वे, आस्ट्रेलिया, तंजानिया, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बावे, फ़िजी, न्यूजीलैण्ड आदि देशों में भारतीय संस्कृति, गायत्री तथा यज्ञ के दर्शन एवं व्यवहारिक अध्यात्म का पक्ष प्रचार-प्रसार।

''भारतीय संस्कृति विज्ञान सम्मत है''- परम पूज्य गुरुदेव के इस दर्शन तथा मानव-धर्म ''इंटर-फेथ-रिलीजन'' संबंधी उनके विचारों का सारे विश्व में विस्तार करने के लिए संकल्पित।
''ज्ञान भारती'' सम्मान से 1998 में सम्मानित ।
''हिन्दू ऑफ दि ईयर'' पुरस्कार से एफ.आई.ए., एफ.एच.ए.द्वारा 1999 में सम्मानित ।
अमेरिका की विश्वविख्यात अंतरिक्ष इकाई 'नासा' द्वारा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार-प्रसार हेतु संस्तुति एवं विशेष सम्मान ।
''भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार राष्ट्र सेवा सम्मान'' पुरस्कार से 2000 में सम्मानित ।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति ।

श्रद्धेय शैल बाला पण्ड्या

प्रमुखः श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट, शांतिकुंज 

वर्तमान प्रमुख (संचालिका) शांतिकुंज आश्रम - गायत्री परिवार का मुख्यालय । सफलता पूर्वक मुख्यालय का प्रबंध संचालन । 
धर्मपत्नी डॉ.प्रणव पण्ड्या ( कुलाधिपति- देव संस्कृति विश्वविद्यालय व निदेशक-ब्रह्मवचर्स शोध संस्थान ) के साथ इस विशाल संगठन के क्रियान्वयन में सहभागीदारी । 
जीवन वृत्त जन्म 20 दिसम्बर, 1953 (गीता जयंती) अखण्ड ज्योति संस्थान, घीयामण्डी, मथुरा । 
माता-पिता के सानिध्य एवं आध्यात्मिक परिवेश में पालन । 
देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इन्दौर से मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि । स्नातक शिक्षण के साथ अन्य गतिविधियाँ एवं एन.सी.सी.का उच्च शिक्षण । इन्दौर विश्वविद्यालय, भारत से चिकित्सकीय मनोविज्ञान के क्षेत्र में सराहनीय शोधकार्य एवं लेखन। फरवरी 1968 से प. पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से गायत्री परिवार के क्रिया कलापों में सक्रिय भागीदारी ।

  • 1978 से डॉ.प्रणव पण्ड्या व डेढ़ वर्ष के पुत्र चिन्मय के साथ शांतिकुंज में निवास प्रारम्भ । 
  • 1980 से 1994 तक परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माता के साथ नारी जागरण अभियान में सक्रिय भागीदारी व भारत के बाहर लाखों व्यक्तियों को प्रवचन से सम्बोधन । 
  • परम वंदनीया माताजी के महाप्रयाण के पश्चात 1994 से मातृसत्ता के रूप में एवं गुरुसत्ता के सूक्ष्म मार्गदर्शन में गायत्री परिवार की देखभाल । प्रतिदिन हजारों लोगों को असीमित प्यार व दुलार, उनके कष्ट निवारण एवं हजारों की संख्या में भेंटवार्ता । 
  • सफलता पूर्वक इस मिशन का कार्य संचालन करते हुए भारत व भारत के बाहर प्रतिदिन 3 हजार से अधिक पत्रों का पत्राचार द्वारा व्यक्तिगत समाधान ।