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गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ - भावार्थ :

 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

 

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।


गायत्री शक्तिपीठ वाटिका परिचय
गुलाबी नगर जयपुर से २५ कि. मी. दूर दक्षिण दिशा में लगभग २०० वर्ष पूर्वयह नगर बसा था।
यह एक सुन्दर धार्मिक स्थान है।यहाँ हमेशा से विद्वान व तपस्वी लोग रहते आये है।
२० वीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ ....More

गायत्री उपासना:
गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है । वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है । माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ । इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं ।
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यज्ञ
यज्ञ शब्द के तीन अर्थ हैं- १- देवपूजा, २-दान, ३-संगतिकरण । यज्ञ का तात्पर्य है-त्याग, बलिदान, शुभ कर्म । अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान् सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण ..More

गायत्री स्तोत्र
सुकल्याणीं वाणीं सुरमुनिवरैः पूजितपदाम ....More

श्री गायत्री चालीसा
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड ॥ 
शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥ १॥ 
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