ब्रह्मवर्चस शोधसंस्थान

ब्रह्मवर्चस शोधसंस्थान

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के विषय निम्नलिखित हैं-
१. ध्यान के द्वारा आधि (मानसिक रोग), व्याधि (शारीरिक रोग) निवारण ।
२. आसन- प्राणायाम, बंध,मुद्रा आदि से शरीर के गुह्य- प्रसुप्त केंद्रों का जागरण ।
३ .सोऽहम् साधना, अनाहत नाद का सूक्ष्म स्वर विज्ञान ।
४.सात्विक, राजसिक एवं तामसिक भोजन का मन पर प्रभाव ।
५.शब्द शक्ति, मन शक्ति का मनोबल बढ़ाने, चक्रों के जागरण में उपयोग ।
६.संगीत स्वरलहरियों का तनाव निवारण में उपयोग ।
७. अग्निहोत्र (यज्ञ) द्वारा शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार (यज्ञोपैथी) ।
'यज्ञ का वातावरण पर प्रभाव ।
१. हिमालय की दुर्लभ जड़ी- बूटियों पर प्रयोग एवं आयुर्वेद का पुनर्जीवन ।
१०. सूर्य चिकित्सा विज्ञान ।
११. प्राण चिकित्सा विज्ञान ।
१२. वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर प्रयोग व परीक्षण ।

वनौषधियों का वाष्पीकरण स्थिति में प्रयोग रोगों के निदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यह लाभ हमारे यहाँ अग्निहोत्र के माध्यम से दिया जाता है । अग्निहोत्र में तैलीय तत्त्व प्रधान समिधाएँ और हवन सामग्री दोनों का ही प्रयोग होता है । बहुत न्यून मात्रा में घी को भी सम्मिलित किया जाता है । समिधा के रूप में अन्य काष्ठ (जो विशिष्ट गुण संपन्न औषधीय तत्त्वों से संपन्न होते हैं) ही प्रयुक्त होते हैं । ऐसे काष्ठों में शारीरिक रोगों के निवारण की  शक्ति पाई जाती है । आमतौर से आम, पीपल, वट, शमी, चंदन, देवदारू, तगर, विल्व जैसे वृक्षों की लकड़ियाँ ही इस निमित्त अग्नि प्रज्वलन के लिए कार्य में लाई जाती है । किस आधार पर किसे प्रमाणिक माना जाए यह चुनाव शांतिकुंज के वैज्ञानिक कालम क्रोमेटोग्राफी पूरी तरह से कम्प्यूटराईज्ड एक जटिल संयंत्र है, जो औषधियों के सांद्र क्वाथ एवं वाष्पीकृत गैसों का परिपूर्ण विश्लेषण कर उसका एक ग्राफ पर आकलन करता जाता है । ज्वलन से पूर्व औषधि युक्त पौधे में क्या- क्या कार्यकारी तत्त्व विद्यमान थे, एवं उस प्रक्रिया से गुजरने के उपरांत उनमें क्या परिवर्तन हुआ ? धूम्र में कहीं कार्बन के हानिकारक कण तो विद्यमान नहीं हैं, यह प्रामाणिक जानकारी भी जी.एल.सी.यंत्र दे देता है । वनौषधि यजन प्रक्रिया, धूम्रों को व्यापक बनाकर सुगंध फैलाकर समूह चिकित्सा की विधा है, जो पूर्णतः विज्ञानसम्मत है । गंध प्रधान धूम्र के माध्यम से मस्तिष्क के प्रसुप्त केंद्रों का उद्दीपन, अंदर के हारमोन रस द्रव्यों का रक्त में आ मिलना तथा श्वास द्वारा प्रमुख कार्यकारी औषधीय घटकों का उन ऊतकों तक पहुँच पाना, जो कि जीवनीशक्ति निर्धारण अथवा व्याधि निवारण हेतु उत्तरदायी है, ये कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं जो वनौषधि यजन अर्थात अग्निहोत्र से प्राप्त होती है । अग्निहोत्र प्रक्रिया विज्ञान की कसौटी पर कितनी सही है, ब्रह्मवर्चस के वैज्ञानिक भौतिकीय एवं रासायनिक आधार पर यह परीक्षण कर रहे हैं । अपने उद्देश्य में उन्हें महत्त्वपूर्ण सफलताएँ मिल भी रही हैं । अध्यात्म के विज्ञान सम्मत प्रतिपादन हेतु यह शोध संस्थान विश्व में अनूठा है । यहाँ पर हो रही शोधें विश्व भर में बुद्धिजीवियों के लिये एक चुनौती बनी हुई हैं और उनका अध्यात्म के प्रति ध्यान आकर्षित कर रही है । विश्व में बढ़ती हुई समस्याओं के लिए आध्यात्मिक मान्यताओं की कितनी अधिक आवश्यकता है ? यह तर्क की कसौटी पर, विज्ञान की कसौटी पर खरा उतर रहा है । बड़ी मात्रा में विश्व भर के बुद्धिजीवी यहाँ से प्रेरणा व मार्गदर्शन लेकर अध्यात्म की ओर झुक रहे हैं । धरती पर स्वर्गीय वातावरण तभी बन सकेगा जब हमारा बुद्धिजीवी वर्ग- प्रतिभाशाली वर्ग आध्यात्मिक मान्यताओं को जीवन में उतारे तथा उसके प्रचार- प्रसार में अपना योगदान दे । ऐसा ब्रह्मवर्चस जैसे शोध संस्थानों के माध्यम से ही संभव है । निकट भविष्य में इस प्रकार के शोध संस्थानों की संख्या व क्षमता बढ़ती रहनी चाहिए ।